वो मशरूफ रहते है अपनो के बीच.. | वर्षा धामा कवियित्री बागपत

वो मशरूफ रहते है अपनो के बीच,
तो हम भी अब सताया नही करते,
बहुत बार किया है बयां दर्द उन्हें अपना,
फर्क उन्हें पड़ता नही,तो हम भी अब बताया नही करते,
नादान बनकर जीये थे अब तक हम ज़िन्दगी को,
अब समझ मे आया है दस्तूर दुनिया का,
जिन्हें कद्र नही होती सच्ची चाहत की,
उनके लिए कभी आँसू बहाया नही करते।

Comments

Popular posts from this blog

This is My Life by me | (One Million Provoking Thoughts by Anonymous)

The Fault in our Society : He & They

Love Yourself More: Keynote by Self-love Bestseller Author Ms. Aaira Kaurr | Mindselo