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Showing posts from April, 2020

कोरोना गजल - ज़िया बागपति शायर | Enlivening Emotions

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ये छुवा छूत की बीमारी  है इसकी  चैन  को तोड़ो तुम  इससे उससे मिलना-जुलना कुछ दिन यारों छोड़ो तुम  डाक्टरों ने जो बतलाया उन  बातों  का ध्यान करो  जो भी है क़ानून नियम उन सब का तुम सम्मान करो  घर से बाहर निकलोगे तो   बीमारी  ये   फैलेगी  एक ज़रासी लापरवाही जान   तुम्हारी ले लेगी  घर में  रह कर करो इबादत घर में पूजा पाठ करो  रब की मर्ज़ी यही है अब तो घर में रह कर ठाठ करो  कोरोना की इस आफत से या रब छुटकारा दे दे  हम से जो तूने  छीना वह  इक इक पल प्यारा दे दे।        ज़िया बागपति शायर         रिपोर्ट-विपुल जैन

चलो फिर से वहीं लौट चलते है | वर्षा धामा कवियित्री बागपत

चलो, फिर से वहीं लौट चलते है, वो लम्हे,वो यादें,वो खुशियां,फिर से याद करते है, अपने दिल की गलियों को,फिर से आबाद करते है, तुम मेरी सुनो,मैं तुम्हारी सुनू,पास बैठकर बाते चार करते है, चलो फिर से वहीं लौट चलते है.... तुम थामो हाथ मेरा चुपके से,मैं साथ चलूं खामोश तुम्हारे,  दुनिया के झमेलों से,दर्द के इन मेलो से कहीं दूर चलते है, किसी एकांत में चलकर,प्रकृति की गोद में सर रखते है, चलो फिर से वहीं लौट चलते है जो बनी है दूरियां बीच हमारे,उनको दूर करते है, तुम पोछो आंसू मेरे,और मैं तुम में तुम में खो जाऊं, एक बार फिर से खुद को बेकरार करते है, चलो फिर से वही लौट चलते है, ले चलो कुछ लम्हो के लिए मुझे सबसे दूर,जहां मैं,तुम और सुंदर नज़ारे हो बस, फिर एक दूजे से दिल की बात कहते है,फिर प्यार का इज़हार करते है, तुम छुपा लो अपनी बाहों में मुझे,तुम्हारे अलावा कुछ न दिखाई दे, चलो फिर से एक दूजे पर मरते है, चलो फिर से वहीं लौट चलते है, मुझसे शिकायतें तुम कर लो,कुछ गिले मैं तुमसे कर लूं, इसी बहाने एक दूजे के साथ वक़्त गुजारते है, चलो फिर से वही लौट चलते है, तुम मुझे समझो,और मैं तुम्हे सम

आखिरी फोन का इंतजार | मनकेश्वर महाराज भट्ट | Enlivening Emotions

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#आखिरी फोन का इंतजार सर्द के मौसम की शुरूआत हो चुकी थी , निरंतर बढ़ती ठंडी के कारण सुबह की धूप भाने लगी थी ।इस ठंढ़ की कपकपाहट में भी मेरी इश्क पनपती जा रही थी ।सुबह से शाम और रात का दो पहर गुजरना मुश्किल बनता जा रहा था ।एक चाय और सुबह की धूप की तरह उनकी लत लगती ही जा रही थी । जबतक उनसे बात ना हो , रात ढलती ही ना थी रातों के तीन पहर में ही , मानो कई एहसास सूली पर चढ़ती रहती ।बस ... अब उनसे बातें करना चाय पीने के बराबर होने लगी ।सुबह , शाम ..बस इंतज़ार करते रहना कब फोन की घण्टी बज उठे ।सुबह की सर्द भरी मौसम में मानो जैसे .... शरीर की गरमाहट बस उनके गर्माहट भरी बातों से ही होने लगी , मीठी - सी - आवाज ,चुपचाप सुनते रहना ,  कोई प्रतिउत्तर ना देने पर ..."सुन रहे हो ना" का सवाल मानों आज  भी यहीं कहीं गूँज रही हो जो बार - बार कानों को उस ओर खींचती है ।वह हर दिन एक सवाल बड़े ही सादगी से कर लिया करती थी - " कछू बोला भी करो जी , कहीं कोनो और निक त  न लग गइल"।और जबाब में इतना कह जाय करता था - "बस, तोहरा क कोई निक लग जाई तो बताई देना" ।चाय और ये बात करने की लत

शुक्रिया... | वर्षा धामा कवियित्री बागपत

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शुक्रिया मेरी ज़िन्दगी में आने के लिए, मुझे बेइंतहा चाहने के लिए, जो देखे थे कभी ख्वाब मैंने, शुक्रिया,मेरे उन ख्वाबो को सच बनाने के लिए, कभी सोचा न था कि किस्मत इतनी अच्छी होगी मेरी, शुक्रिया,मेरे जीवन को अनमोल बनाने के लिए, होगा न कोई दुनिया में तुम जैसा, शुक्रिया,मेरे होंठो पर मुस्कान सजाने के लिए, तुमने बदल दिया है मेरी ज़िन्दगी को कुछ ही वक़्त में, शुक्रिया, मुझे अपने दिल में बसाने के लिए, इन चंद लफ़्ज़ों में न बयां कर पाऊँगी अपनी खुशी, उम्र भर चाहने का वादा करते हुए कहती हूँ, हर जीवन में तुम्हे ही पाना चाहूंगी, करना प्यार मुझसे हमेशा यूं ही, तुम बिन न मैं एक पल भी जी पाऊँगी......

वो मशरूफ रहते है अपनो के बीच.. | वर्षा धामा कवियित्री बागपत

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वो मशरूफ रहते है अपनो के बीच, तो हम भी अब सताया नही करते, बहुत बार किया है बयां दर्द उन्हें अपना, फर्क उन्हें पड़ता नही,तो हम भी अब बताया नही करते, नादान बनकर जीये थे अब तक हम ज़िन्दगी को, अब समझ मे आया है दस्तूर दुनिया का, जिन्हें कद्र नही होती सच्ची चाहत की, उनके लिए कभी आँसू बहाया नही करते।

कांच सा दिल | वर्षा धामा कवियित्री (बागपत)

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काँच सा दिल....