चलो फिर से वहीं लौट चलते है | वर्षा धामा कवियित्री बागपत

चलो, फिर से वहीं लौट चलते है,
वो लम्हे,वो यादें,वो खुशियां,फिर से याद करते है,
अपने दिल की गलियों को,फिर से आबाद करते है,
तुम मेरी सुनो,मैं तुम्हारी सुनू,पास बैठकर बाते चार करते है,
चलो फिर से वहीं लौट चलते है....
तुम थामो हाथ मेरा चुपके से,मैं साथ चलूं खामोश तुम्हारे,  दुनिया के झमेलों से,दर्द के इन मेलो से कहीं दूर चलते है,
किसी एकांत में चलकर,प्रकृति की गोद में सर रखते है,
चलो फिर से वहीं लौट चलते है
जो बनी है दूरियां बीच हमारे,उनको दूर करते है,
तुम पोछो आंसू मेरे,और मैं तुम में तुम में खो जाऊं,
एक बार फिर से खुद को बेकरार करते है,
चलो फिर से वही लौट चलते है,
ले चलो कुछ लम्हो के लिए मुझे सबसे दूर,जहां मैं,तुम और सुंदर नज़ारे हो बस,
फिर एक दूजे से दिल की बात कहते है,फिर प्यार का इज़हार करते है,
तुम छुपा लो अपनी बाहों में मुझे,तुम्हारे अलावा कुछ न दिखाई दे,
चलो फिर से एक दूजे पर मरते है,
चलो फिर से वहीं लौट चलते है,
मुझसे शिकायतें तुम कर लो,कुछ गिले मैं तुमसे कर लूं,
इसी बहाने एक दूजे के साथ वक़्त गुजारते है,
चलो फिर से वही लौट चलते है,
तुम मुझे समझो,और मैं तुम्हे समझूं,दिल की दूरियां कम करते है,
फिर से हम साथ बैठकर अपनी आँखे नम करते है,
चलो फिर से वहीं लौट चलते है,
ज़ख्म तुम मेरे भर दो,मरहम मैं तुम्हे लगा दूं,
चलो सब कुछ भूलकर ये दूरी कम करते है...
चलो फिर से वहीं लौट चलते है...

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