उड़ती पतंग सा था मैं । रोहित कुमार

उड़ती पतंग सा था मैं,
डोर से दूर, गुम होकर रह गया मैं,,
बहती हवा सा था मैं,
थम सा गया हूं, खुद में ही मैं,,
फिरता था पंछी बन मैं,
रुक ही गया, रुख उसका देख मैं,,
एक चंचल सा भंवरा था मैं,
मुरझा गया, पत्तों के जैसे मैं,,
चमकता सितारा सा था मैं,
हो गया एक गुमनाम मुसाफिर मैं,,
जो था..., न हूं...., ना रहूंगा मैं,
जो हूं...., ना था...., ना रहूंगा मैं।

@रोहित कुमार

Comments

Popular posts from this blog

KEEP WRITING | Writing Contest | Enlivening Emotions

The Fault in our Society : He & They

Young Creatives Writing Competition 2021 (Global) by The Inked Perceptions